Uncategorized

स्वराज्य पर्व” में लोकमान्य के समग्र योगदान पर केन्द्रित “स्वराज्य” स्मारिका का प्रकाशन

पुणे: प्रेस विज्ञप्ति लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को आधुनिक भारत का कौटिल्य कहा जाता है। 100 वर्ष पूर्व 30 दिसम्बर 1916 को लखनऊ की सभा में तिलक जी ने उद्घोष किया था “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे।” इसी उद्घोष से प्रेरित भारतीय जनमानस स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में ललकार उठा था, जिसके प्रेरक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक थे। उन्होंने भारतमाता के भाल पर ऐसा अनूठा तिलक लगाया, जिसकी दीप्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही गई। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी रणभेरी बजायी, जिसकी अनुगूंज समूचे देश में कोने-कोने तक फैल गई थी। लोकमान्य तिलक ने भारतीय युवा मानस की हृत्तंत्री को इनझना कर देशप्रेम का गुंजार कर दिया था, फिर तो इस राग पर लोग अपना सर्वस्व न्योछावर करने को उद्यत हो गये थे।

स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार “लोकमान्य तिलक का राजनीतिक कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं में बहुत ऊँचा स्थान है। उन्होंने सबसे पहले राजनीतिक एकता के सिद्धांत का प्रचार किया। वास्तव में किसी भी भारतीय ने अपने देश के लिए इतने कष्ट नहीं सहे, जितने कि तिलक जी ने, जिन्होंने भारत को स्वराज्य के निकट पहुंचाया।” गांधीजी ने कहा था कि “आने वाली पीढ़ियां उन्हें आधुनिक भारत के जन्मदाता के रूप में याद रखेंगी।” तिलक जी ने स्वराज्य के लिए समाज को जागृत करने हेतु ‘गणपति उत्सव’ एवं ‘शिवाजी उत्सव’ जैसे सामाजिक एवं सांस्कृतिक अभियान चलाये। लोकमान्य तिलक और स्वामी विवेकानंद समकालीन थे और उनमें गहरा आत्मीय संबंध था। भारत के स्वराज्य में लोकमान्य तिलक का श्रेष्ठ योगदान रहा, जिसे युगों-युगों तक भारतवासी स्मरण करते रहेंगे।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रदूत लोकमान्य तिलक देश के पहले ऐसे प्रखर पत्रकार थे, जिन्हें पत्रकारिता के कारण तीन बार कारावास भोगना पड़ा था। तिलक ने अपने समाचार पत्रों के माध्यम से जन जागृति की नयी पहल की थी और उन्हें भारत को दासता से मुक्त करने के लिये जनता के आह्वान का राष्ट्रीय मंच बना दिया था। तिलक जी का बिहार के साथ एक विशेष सम्बंध भी रहा। 30 अप्रैल 1908 को जब खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध बिहार के मुजफ्फरपुर में बम विस्फोट किया, तो लोकमान्य ने अपने केसरी तथा मराठा के मई एवं जून के अंकों में इस कार्रवाई के समर्थन में अनेक सम्पादकीय लिखे, जिन्हें अंग्रेज सरकार ने राजद्रोहात्मक ठहराया और उन्हें बर्मा के माण्डले जेल में छः वर्ष बिताने की सजा सुनायी गयी।

लोकमान्य ने जेल की यातनामय परिस्थतियों में भी ‘श्रीमद्भगवद्गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र’ जैसे एक ऐसे बृहद, ऐतिहासिक और विश्व मानवता के लिये अत्यन्त कल्याणकारी ग्रन्थ की रचना कर दी, जिसके बारे में सोचना भी आज असंभव लगता है। इस दिव्य ग्रन्थ का प्रकाशन 1915 में किया गया और हिंदी अनुवाद महान साहित्यकार एवं पत्रकार श्री माधवराव सप्रे द्वारा 1916 में किया गया था। नेताजी सुभाष ने श्री केलकर को लिखे अपने पत्र में इस प्रसंग पर बहुत ही मार्मिक और सारगर्भित उद्गार व्यक्त किये है, ‘केवल लोकमान्य जैसा दार्शनिक ही, जिसे अदम्य इच्छाशक्ति का वरदान मिला था, उस बन्दी जीवन के शक्ति हननकारी प्रभावों से बच सकता था, उस यन्त्रणा और दासता के बीच मानसिक सन्तुलन बना कर रख सकता था और ‘गीता रहस्य’ जैसे विशाल एवं युग-निर्माणकारी ग्रन्थ का प्रणयन कर सकता था।” तिलक के अद्भुत ग्रंथ ‘गीता रहस्य’ ने स्वाधीनता आन्दोलन के दौर से लेकर आज तक करोड़ों देशवासियों का पथ-प्रदर्शन किया है और आज भी कर रहा है।

पश्चिमी भौतिकतावादी कुविकास की अन्धी दौड़ में शामिल हमारा देश आज जिस सांस्कृतिक, नैतिक, वैचारिक एवं आध्यात्मिक संकट के दौर से गुजर रहा है, उससे बाहर निकलने में लोकमान्य तिलक रचित ‘श्रीमद्भगवद्गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र’ की भूमिका और प्रासंगिकता एक बार फिर से बढ़ गयी है।लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक आधुनिक भारत में पहचान के महत्व को आगे बढ़ाने वाले पहले नेता थे। तिलक ने महसूस किया कि पहचान नीरस पड़े समाज को सक्रिय करने का एक बेहतरीन उपकरण हो सकता है। उनका मानना था कि एक बार जब लोग अपनी पहचान को समझ जाएँगे तो स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल होने के लिए वे स्वयं ही प्रेरित होने लगेगे। महात्मा गांधी द्वारा उन्हें “आधुनिक भारत का जन्मदाता” कहा जाना या ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता द्वारा “भारतीय अशांति का जनक” कहा जाना भारतीय समाज और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान और उनकी विरासत को प्रमाणित करता है। तिलक स्वराज और स्वदेशी के विचार को आगे बढ़ाने वाले पहले नेता थे। उन्होंने जिस तरह से लोगों में स्वराज और स्वदेशी की भावना को जगाने के लिए भारतीय संस्कृति, शिक्षा और समाचार पत्रों का उपयोग किया है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि एक दार्शनिक राजनीतिज्ञ के रूप में उनका योगदान अतुलनीय है।

संस्कृति, शिक्षा और प्रेस के माध्यम से जनमानस के बीच राजनीतिक चेतना को जागृत करने का तिलक का यह प्रयोग इतना शक्तिशाली और सफल था कि बाद में गाँधी और अंबेडकर जैसे अन्य लोगों ने भी इसी प्रयोग को अपनाया। तिलक का स्वराज भी राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था। वे सांस्कृतिक और आर्थिक स्वतंत्रता की आवश्यकता के प्रति भी सचेत थे। आज जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तो तिलक की विरासत को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक राष्ट्रवाद को भावना की पुनर्जीवित करना और संस्कृति के माध्यम से सामाजिक एकीकरण के लिए प्रयास करना तिलक की रणनीति की प्रमुख विशेषताएँ थीं। आत्मनिर्भरता के लिए तिलक की यह रणनीति आज भी प्रासंगिक बनी हुई है।राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ स्मृति न्यास लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, मुंशी प्रेमचन्द एवं राष्ट्रकवि दिनकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने को अपना लक्ष्य बनाकर सांस्कृतिक भारत के निर्माण में निरंतर संलग्न रहा है।

इसी सिलसिले में स्वराज्य के 75वें वर्ष (अमृत वर्ष) में स्वराज्य के प्रणेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जयंती के पावन अवसर पर आयोजित हुए “स्वराज्य पर्व” में लोकमान्य के समग्र योगदान पर केन्द्रित “स्वराज्य” स्मारिका का प्रकाशन किया गया। इसके अलावा न्यास द्वारा देश के विभिन्न भागों में तिलक जी के विचारों का प्रसार करने हेतु ‘स्वराज्य पर्व’ के आयोजन किये जाते रहे हैं और इन अवसरों पर उनके जीवन एवं संवादों पर केन्द्रित एवं लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल प्रसिद्ध निर्देशक श्री मुजीब खान द्वारा निर्देशित नाटक ‘लोकमान्य तिलक’ का मंचन भी अब तक लाखों दर्शकों के समक्ष हो चुका है।

‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ काल में न्यास ने ‘लोकमान्य तिलक’ नाटक के 100 मंचनों का लक्ष्य रखा था, और यह गर्व का विषय है कि अब तक इस नाटक के 30 अत्यंत सफल मंचन देश भर में किये जा चुके हैं। यह सिलसिला निरंतर आगे बढ़ रहा है।इसी कड़ी में ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के अन्तर्गत आगामी 30 मार्च, 2023 को बालगंधर्व रंग मंदिर पुणे, महाराष्ट्र में संध्या 5.00 बजे से लोकमान्य तिलक की स्मृति में आयोजित हो रहे ‘स्वराज्य पर्व’ में राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास द्वारा ‘लोकमान्य तिलक’ नाटक का भव्य मंचन किया जायेगा। पुणे, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध लेखक एवं नाटककार श्री काजी मुश्ताक अहमद द्वारा लिखित एवं श्री मुजीब खान द्वारा निर्देशित इस नाटक को देखने के लिये आप सभी सादर आमंत्रित हैं। इस अवसर पर राष्ट्रकवि दिनकर न्यास द्वारा प्रकाशित स्मारिका “स्वराज्य” का विमोचन होने के साथ-साथ “भारतीय स्वराज्य और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक” विषय पर एक राष्ट्रीय परिचर्चा का भी आयोजन किया गया है।

इसके साथ ही ‘लोकमान्य तिलक’ नाटक के लेखक श्री काजी मुश्ताक अहमद को न्यास द्वारा सम्मानित भी किया जायेगा। इसके अन्तर्गत उन्हें प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह और दो लाख रुपये की सम्मान राशि भी प्रदान की जायेगी। इस महान और ऐतिहासिक अवसर का साक्षी बनने और तिलक जी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु आप अवश्य उपस्थित होंगे, ऐसा हमें विश्वास है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!